झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन-कानन में
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर !
अरे वर्ष के हर्ष !
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार !
उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल !
धँसता दलदल
हँसता है नद खल्-खल्
बहता, कहता
कुलकुल कलकल कलकल
देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल
इस मरोर से
इसी शोर से
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा
सघन वह छोर !
राग अमर !
अम्बर में भर निज रोर !
-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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