04 August 2018

बादल राग


झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर

झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन-कानन में
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर !

अरे वर्ष के हर्ष !
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार !

उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल !

धँसता दलदल
हँसता है नद खल्-खल्
बहता, कहता
कुलकुल कलकल कलकल 

देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल
इस मरोर से
इसी शोर से
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा
सघन वह छोर !
राग अमर !
अम्बर में भर निज रोर !

-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

No comments: