" उनके साहित्य के केन्द्र में वह मनुष्य है जो श्रम करता है, सम्पत्ति और सुख-साधनों से वंचित है, विषम परिस्थितियों से जूझता है गिरता है फिर आगे बढ़ता है। निराला हिन्दी साहित्य में मनुष्य की कर्मठता, वीरता, धैर्य, आंतरिक द्वन्द्व, उसकी अपार जिजीविषा के चित्रकार हैं। निराला का मानववाद हिन्दी साहित्य में उनके अभ्युदयकाल से आरम्भ होता है और अन्तिम दौर तक निरन्तर गहरा होता जाता है।"
-रामविलास शर्मा
निराला जी की साहित्य साधना, भाग-2, पृष्ठ-159
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