05 August 2018

वर दे वीणावादिनि वर दे

वर दे
वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव
अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि
ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम
हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय
ताल-छंद नव
नवल कंठ
नव जलद-मन्द्ररव
नव नभ के
नव विहग-वृंद को
नव पर
नव स्वर दे !
वर दे
वीणावादिनि वर दे

-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

No comments: