05 August 2018

भिक्षुक

वह आता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता
पथ पर आता

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को
भूख मिटाने को
मुँह
फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं
सदा हाथ फैलाए
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना
दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते ?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते

चाट रहे जूठी पत्तल वे
सभी सड़क पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे
कुत्ते भी हैं अड़े हुए

ठहरो ! अहो
मेरे हृदय में है अमृत
मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख
मैं अपने हृदय में खींच लूँगा

-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

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